Hindi Poem : Jakhmo ka jamana (जख्मों का जमाना )

a boy sitting in a bench in solitude

In this Hindi poem, I have explored the empty pursuit of people nowadays for wealth and power leaving behind the values which once existed that connected not only a particular family but connected the whole society as a family.

इस कविता मै बदलते हुए समय के साथ बदलते हुए लोग , इस विचार पे चलते हुए उन जख्मों की तरफ देखते हुए तो मानवीय संवेदना ने झेले है मैंने अपना दर्द बयान किया है |

कभी किसी से सुना था ,

विश्वास तब न हुआ था 

अहसास अब होता है ,

इंसान जिंदगी भर कुछ खोता है ,

पाने की चाहत के दिन रात बीज बोता है ,

पोधा न जाने कब उगेगा ,

उग गया तो क्या उग रहेगा ,

सोचा मैंने तभी था ,

जीवन का मूल्य न जाने कभी था ,

आज की परिसतिथि को ,

सोच किसी ने कभी था ,

बातें तब की सुनता हु ,

खुशियां तब की चुनता हु ,

समाज एक परिवार है ,

साथ में हर त्योहार है ,

जीत न कोई हार है ,

यही उस समय का विचार है |

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